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शेर
जो अर्ज़ां है तो है उन की मता-ए-आबरू वर्ना
ज़रा सी चीज़ भी बेहद गिराँ है इस ज़माने में
अहमक़ फफूँदवी
शेर
न हो एहसास तो सारा जहाँ है बे-हिस-ओ-मुर्दा
गुदाज़-ए-दिल हो तो दुखती रगें मिलती हैं पत्थर में
फ़िराक़ गोरखपुरी
शेर
बे-हिस-ओ-हैराँ जो हूँ घर में पड़ा इस के एवज़
काश मैं नक़्श-ए-क़दम होता किसी की राह का