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शेर
नज़रों का बेचैन बगूला गर्द उड़ाता फिरता है
जिस महफ़िल में तुम नहीं होते उस महफ़िल के सहरा में
कामरान नफ़ीस
शेर
अब समझ आया हमें ये रूह क्यों बेचैन है
फिर रहे हैं ज़ेहन पर हम बोझ लादे जिस्म का
राघवेंद्र द्विवेदी
शेर
बताएँ क्या कि बेचैनी बढ़ाते हैं वही आ कर
बहुत बेचैन हम जिन के लिए मालूम होते हैं