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शेर
जल्वा हो तो जल्वा हो पर्दा हो तो पर्दा हो
तौहीन-ए-तजल्ली है चिलमन से न झाँका कर
फ़ना निज़ामी कानपुरी
शेर
हिलाल ओ बद्र दोनों में 'अमीर' उन की तजल्ली है
ये ख़ाका है जवानी का वो नक़्शा है लड़कपन का
अमीर मीनाई
शेर
न काबा ही तजल्ली-गाह ठहराया न बुत-ख़ाना
लड़ाना ख़ूब आता है तुम्हें शैख़ ओ बरहमन को
मिर्ज़ा मायल देहलवी
शेर
तू जो मूसा हो तो उस का हर तरफ़ दीदार है
सब अयाँ है क्या तजल्ली को यहाँ तकरार है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
शेर
मिरे दिल की तजल्ली क्यों रहे पोशीदा मज्लिस में
ज़'ईफ़ी सूँ हुआ है पर्दा-ए-फ़ानूस तन मेरा
वली दकनी
शेर
जिस ने जी भर के तजल्ली को कभी देखा हो
कोई ऐसा भी तिरी जल्वा-गह-ए-नाज़ में है
मुमताज़ अहमद ख़ाँ ख़ुशतर खांडवी
शेर
तजल्ली बे-नक़ाब और कोर आँखें क्या क़यामत है
कि सूरज सामने है और सियह-बख़्ती नहीं जाती