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शेर
ये भोग भी एक तपस्या है तुम त्याग के मारे क्या जानो
अपमान रचियता का होगा रचना को अगर ठुकराओगे
साहिर लुधियानवी
शेर
कमर बाँधे हुए चलने को याँ सब यार बैठे हैं
बहुत आगे गए बाक़ी जो हैं तय्यार बैठे हैं
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
शेर
फ़रहत एहसास
शेर
हर पत्ती बोझल हो के गिरी सब शाख़ें झुक कर टूट गईं
उस बारिश ही से फ़स्ल उजड़ी जिस बारिश से तय्यार हुई
महशर बदायुनी
शेर
अब मुझ को रुख़्सत होना है अब मेरा हार-सिंघार करो
क्यूँ देर लगाती हो सखियो जल्दी से मुझे तय्यार करो
शबनम शकील
शेर
ये मिस्रा काश नक़्श-ए-हर-दर-ओ-दीवार हो जाए
जिसे जीना हो मरने के लिए तय्यार हो जाए
जिगर मुरादाबादी
शेर
कोई ले ले तो दिल देने को मैं तय्यार बैठा हूँ
कोई माँगे तो अपनी जान तक क़ुर्बान करता हूँ
मुज़्तर ख़ैराबादी
शेर
हमारी आँखों में बस गया है अजीब पंजाब आँसुओं का
इधर से रावी चला उधर से चनाब तय्यार हो रहा है
फ़रहत एहसास
शेर
न लगी मुझ को जब उस शोख़-ए-तरहदार की गेंद
उस ने महरम को सँभाल और ही तय्यार की गेंद