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शेर
मोहब्बत ही में मिलते हैं शिकायत के मज़े पैहम
मोहब्बत जितनी बढ़ती है शिकायत होती जाती है
शकील बदायूनी
शेर
जितनी बुरी कही जाती है उतनी बुरी नहीं है दुनिया
बच्चों के स्कूल में शायद तुम से मिली नहीं है दुनिया
निदा फ़ाज़ली
शेर
सब मिटा दें दिल से हैं जितनी कि उस में ख़्वाहिशें
गर हमें मालूम हो कुछ उस की ख़्वाहिश और है
बहादुर शाह ज़फ़र
शेर
बैठे बैठे फेंक दिया है आतिश-दान में क्या क्या कुछ
मौसम इतना सर्द नहीं था जितनी आग जला ली है
ज़ुल्फ़िक़ार आदिल
शेर
उन का वा'दा उन का पैमाँ उन का इक़रार उन का क़ौल
जितनी बातें हैं हसीनों की वो बे-बुनियाद हैं
नूह नारवी
शेर
क़िस्मत में ख़ुशी जितनी थी हुई और ग़म भी है जितना होना है
घर फूँक तमाशा देख चुके अब जंगल जंगल रोना है