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शेर
क्या करिश्मा है मिरे जज़्बा-ए-आज़ादी का
थी जो दीवार कभी अब है वो दर की सूरत
अख़्तर अंसारी अकबराबादी
शेर
हर्फ़ सारे बोल उट्ठें जब भी मैं लिखने लगूँ
अब कोई जज़्बा मिरा महव-ए-दुआ लगता नहीं
बहारुन्निसा बहार
शेर
मुख़्तसर ये है हमारी दास्तान-ए-ज़िंदगी
इक सुकून-ए-दिल की ख़ातिर उम्र भर तड़पा किए