आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "جذب_نگاہ_ناتواں"
शेर के संबंधित परिणाम "جذب_نگاہ_ناتواں"
शेर
दिल्ली पे रोना आता है करता हूँ जब निगाह
मैं उस कुहन ख़राबे की तामीर की तरफ़
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
जब भी मिले वो ना-गहाँ झूम उठे हैं क़ल्ब ओ जाँ
मिलने में लुत्फ़ है अगर मिलना हो काम के बग़ैर
कृष्ण मोहन
शेर
बहादुर शाह ज़फ़र
शेर
तुम्हारे हिज्र में जब भी कैलेंडर पर निगाह डाली
सितंबर के महीने को सितमगर ही पढ़ा मैं ने
अतीब क़ादरी
शेर
जमुना में कल नहा कर जब उस ने बाल बाँधे
हम ने भी अपने दिल में क्या क्या ख़याल बाँधे
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
आश्ना जब तक न था उस की निगाह-ए-लुत्फ़ से
वारदात-ए-क़ल्ब को हुस्न-ए-बयाँ समझा था मैं