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शेर
जो भर भी जाएँ दिल के ज़ख़्म दिल वैसा नहीं रहता
कुछ ऐसे चाक होते हैं जो जुड़ कर भी नहीं सिलते
फ़ुज़ैल जाफ़री
शेर
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
शेर
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
अहमद फ़राज़
शेर
तसद्दुक़ इस करम के मैं कभी तन्हा नहीं रहता
कि जिस दिन तुम नहीं आते तुम्हारी याद आती है