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शेर
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
शेर
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
अहमद फ़राज़
शेर
तर्क-ए-मोहब्बत करने वालो कौन ऐसा जुग जीत लिया
इश्क़ से पहले के दिन सोचो कौन बड़ा सुख होता था
फ़िराक़ गोरखपुरी
शेर
आब-ए-हयात जा के किसू ने पिया तो क्या
मानिंद-ए-ख़िज़्र जग में अकेला जिया तो क्या
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
शेर
न रक्खा जग में रस्म-ए-दोस्ती अंदोह-रोज़ी ने
मगर ज़ानू से अब बाक़ी रहा है रब्त-ए-पेशानी
मोहम्मद रफ़ी सौदा
शेर
मैं ने सूरज चाँद सितारे तेरे नाम लिखे हैं
जग में जितने फूल हैं सारे तेरे नाम लिखे हैं