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शेर
ये वो आँसू हैं जिन से ज़ोहरा आतिशनाक हो जावे
अगर पीवे कोई उन को तो जल कर ख़ाक हो जावे
इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन
शेर
है रिश्ता एक फिर ये कशाकश न चाहिए
अच्छा नहीं है सुब्हा का ज़ुन्नार से बिगाड़
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
शेर
बुत-परस्ती में भी भूली न मुझे याद-ए-ख़ुदा
हाथ में सुब्हा गले में मिरे ज़ुन्नार रहा
असद अली ख़ान क़लक़
शेर
ये किस ज़ोहरा-जबीं की अंजुमन में आमद आमद है
बिछाया है क़मर ने चाँदनी का फ़र्श महफ़िल में
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
शेर
डर के किसी से छुप जाता है जैसे साँप ख़ज़ाने में
ज़र के ज़ोर से ज़िंदा हैं सब ख़ाक के इस वीराने में
मुनीर नियाज़ी
शेर
हमें तो साँस भी लेने की फ़ुर्सतें न रहीं
किसी की याद के मुँह-ज़ोर सिलसिले हैं बहुत
बुशरा बख़्तियार ख़ान
शेर
कुफ़्र-ओ-ईमाँ से है क्या बहस इक तमन्ना चाहिए
हाथ में तस्बीह हो या दोश पर ज़ुन्नार हो
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
शेर
क्या खाएँ हम वफ़ा में अब ईमान की क़सम
जब तार-ए-सुब्हा रिश्ता-ए-ज़ुन्नार हो चुका