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शेर
न पूछो मुझ से लज़्ज़त ख़ानमाँ-बर्बाद रहने की
नशेमन सैकड़ों मैं ने बना कर फूँक डाले हैं
अल्लामा इक़बाल
शेर
बारा-वफ़ातें बीसवीं झड़ियाँ हैं सौ जगह
ऐ ख़ानमाँ-ख़राब जो मिलना है मिल कहीं