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शेर
जलसों में ख़ल्वतों में ख़यालों में ख़्वाब में
पहुँची कहाँ कहाँ निगह-ए-इंतिज़ार आज
अहमद हुसैन माइल
शेर
हिसार-ए-ग़ैर में रहता है ये मकान-ए-वजूद
मैं ख़ल्वतों में भी अक्सर अज़ाब देखता हूँ
अरशद महमूद नाशाद
शेर
अभी ज़िंदा हूँ लेकिन सोचता रहता हूँ ख़ल्वत में
कि अब तक किस तमन्ना के सहारे जी लिया मैं ने
साहिर लुधियानवी
शेर
गर हो शराब ओ ख़ल्वत ओ महबूब-ए-ख़ूब-रू
ज़ाहिद क़सम है तुझ को जो तू हो तो क्या करे
मोहम्मद रफ़ी सौदा
शेर
कह दें तुम से कौन हैं क्या हैं कहाँ रहते हैं हम
बे-ख़ुदों को अपने जब तुम होश में आने तो दो
जलाल मानकपुरी
शेर
तेरा ख़याल ख़्वाब ख़्वाब ख़ल्वत-ए-जाँ की आब-ओ-ताब
जिस्म-ए-जमील-ओ-नौजवाँ शाम-ब-ख़ैर शब-ब-ख़ैर
जौन एलिया
शेर
या-रब कभी वो दिन हो कि ख़ल्वत में वो सनम
खुलवाए अपने बंद-ए-क़बा मेरे हाथ से
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
दिल समझता था कि ख़ल्वत में वो तन्हा होंगे
मैं ने पर्दा जो उठाया तो क़यामत निकली