aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "خود_نگر"
मेरी मानिंद ख़ुद-निगर तन्हाये सुराही में फूल नर्गिस का
मयस्सर ख़ुद निगह-दारी की आसाइश नहीं रहतीमोहब्बत में तो पेश-ओ-पस की गुंजाइश नहीं रहती
सुपुर्दगी में भी इक रम्ज़-ए-ख़ुद-निगह-दारीवो मेरे दिल से मिरे वास्ते नहीं गुज़रे
किया है जब सीं अमल बे-ख़ुदी के हाकिम नेख़िरद-नगर की रईयत हुई है रू ब-गुरेज़
कभी नज़र की तरफ़ देखता है ख़ुद मंज़रकभी नज़र पे फ़िदा होने ख़ुद है आता नूर
ख़ूब-रू ख़ूब काम करते हैंयक निगह में ग़ुलाम करते हैं
जिस पर नज़र पड़े उसे ख़ुद से निकालनारौशन-दिलों का काम है मानिंद-ए-आईना
उन मस्त निगाहों ने ख़ुद अपना भरम खोलाइंकार के पर्दे में इक़रार नज़र आए
तारीकियों ने ख़ुद को मिलाया है धूप मेंसाया जो शाम का नज़र आया है धूप में
समझ में वक़्त का आया करिश्मानज़र ख़ुद पर जो डाली है दिनों ब'अद
हम को भी ख़ुश-नुमा नज़र आई है ज़िंदगीजैसे सराब दूर से दरिया दिखाई दे
दुनिया ने ख़ूब समझा दुनिया ने ख़ूब परखामेरी नज़र को देखा जब आप की नज़र से
फिरते हुए किसी की नज़र देखते रहेदिल ख़ून हो रहा था मगर देखते रहे
ग़ैर तरफ़ क्यूँकि नज़र कर सकूँख़ौफ़ है तुझ इश्क़ के जासूस का
नज़र जो कोई भी तुझ सा हसीं नहीं आताकिसी को क्या मुझे ख़ुद भी यक़ीं नहीं आता
जिस चश्म को वो मेरा ख़ुश-चश्म नज़र आयानर्गिस का उसे जल्वा इक पश्म नज़र आया
अजब तेरी है ऐ महबूब सूरतनज़र से गिर गए सब ख़ूबसूरत
दर्द का फिर मज़ा है जब 'अख़्तर'दर्द ख़ुद चारासाज़ हो जाए
है जुस्तुजू कि ख़ूब से है ख़ूब-तर कहाँअब ठहरती है देखिए जा कर नज़र कहाँ
अपने ही बस पीछे भागता रहता हूँख़ुद को ही बस आगे नज़र के रक्खा है
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