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शेर
हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
दिल के ख़ुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है
मिर्ज़ा ग़ालिब
शेर
ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है
अल्लामा इक़बाल
शेर
होश वालों को ख़बर क्या बे-ख़ुदी क्या चीज़ है
इश्क़ कीजे फिर समझिए ज़िंदगी क्या चीज़ है
निदा फ़ाज़ली
शेर
सभी ज़िंदगी पे फ़रेफ़्ता कोई मौत पर नहीं शेफ़्ता
सभी सूद-ख़ोर तो हो गए हैं कोई पठान नहीं रहा
शुजा ख़ावर
शेर
जिस नूर के बक्के को मह-ओ-ख़ुर ने न देखा
कम-बख़्त ये दिल लोटे है उस पर्दा-नशीं पर
जुरअत क़लंदर बख़्श
शेर
है ये फ़लक-ए-सिफ़्ला वो फीका सा फ़रंगी
रखता है मह ओ ख़ुर से जो पास अपने दो बिस्कुट
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
रंज से ख़ूगर हुआ इंसाँ तो मिट जाता है रंज
मुश्किलें मुझ पर पड़ीं इतनी कि आसाँ हो गईं
मिर्ज़ा ग़ालिब
शेर
तिरे माथे पे ये आँचल बहुत ही ख़ूब है लेकिन
तू इस आँचल से इक परचम बना लेती तो अच्छा था