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शेर
तुझे दानिस्ता महफ़िल में जो देखा हो तो मुजरिम हूँ
नज़र आख़िर नज़र है बे-इरादा उठ गई होगी
सीमाब अकबराबादी
शेर
समझने से रहा क़ासिर कि दानिस्ता नहीं समझा
न जाने क्यूँ हमारी प्यास को दरिया नहीं समझा
जावेद नसीमी
शेर
ख़ुर्शीद-रू हमारा जिस से मिलेगा हर सुब्ह
दानिस्ता वो नमाज़ें अपनी क़ज़ा करेगा
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
न समझोगे तो मिट जाओगे ऐ हिन्दोस्ताँ वालो
तुम्हारी दास्ताँ तक भी न होगी दास्तानों में
अल्लामा इक़बाल
शेर
मुख़्तसर ये है हमारी दास्तान-ए-ज़िंदगी
इक सुकून-ए-दिल की ख़ातिर उम्र भर तड़पा किए