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शेर
हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
दिल के ख़ुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है
मिर्ज़ा ग़ालिब
शेर
इश्क़ जब दख़्ल करे है दिल-ए-इंसाँ में 'मुहिब'
वाहिमे सब बशरिय्यत के करे है इख़राज
वलीउल्लाह मुहिब
शेर
हमेशा शेर कहना काम था वाला-निज़ादों का
सफ़ीहों ने दिया दख़्ल इस में जब से बस ये फ़न बिगड़ा
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
दिल आबाद कहाँ रह पाए उस की याद भुला देने से
कमरा वीराँ हो जाता है इक तस्वीर हटा देने से