aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "رسا"
तुझ से मिलने को बे-क़रार था दिलतुझ से मिल कर भी बे-क़रार रहा
कौन दिल की ज़बाँ समझता हैदिल मगर ये कहाँ समझता है
जिन आँखों से मुझे तुम देखते होमैं उन आँखों से दुनिया देखता हूँ
तिरे नज़दीक आ कर सोचता हूँमैं ज़िंदा था कि अब ज़िंदा हुआ हूँ
कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाबआज तुम याद बे-हिसाब आए
उन झील सी गहरी आँखों मेंइक लहर सी हर दम रहती है
इस घर की सारी दीवारें शीशे की हैंलेकिन इस घर का मालिक ख़ुद इक पत्थर है
इश्क़ में भी सियासतें निकलींक़ुर्बतों में भी फ़ासला निकला
ख़ुश-नसीबी में है यही इक ऐबबद-नसीबों के घर नहीं आती
आहटें सुन रहा हूँ यादों कीआज भी अपने इंतिज़ार में गुम
तेरे आने का इंतिज़ार रहाउम्र भर मौसम-ए-बहार रहा
चाँद होता नहीं हर इक चेहराफूल होते नहीं सुख़न सारे
उठा लाया हूँ सारे ख़्वाब अपनेतिरी यादों के बोसीदा मकाँ से
है कोई यहाँ शहर में ऐसा कि जिसे मैंअपना न कहूँ और वो अपना मुझे समझे
शहर में जैसे कोई आसेब हैशहर में मुद्दत से हंगामा नहीं
बहुत दिनों से कोई हादसा नहीं गुज़राकहीं ज़माने को हम याद फिर न आ जाएँ
ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहलेख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है
उस से कहना कि कभी आ के मिलेहम से रंजिश का सबब जो भी हो
हम किसी को गवाह क्या करतेइस खुले आसमान के आगे
बारहा हम पे क़यामत गुज़रीबारहा हम तिरे दर से गुज़रे
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