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शेर
अहल-ए-म'अनी जुज़ न बूझेगा कोई इस रम्ज़ को
हम ने पाया है ख़ुदा को सूरत-ए-इंसाँ के बीच
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
शेर
निगाह-ए-मेहरबाँ उठती तो है सब की तरफ़ लेकिन
नहीं वाक़िफ़ अभी सब लोग रम्ज़-ए-आश्नाई से
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
शेर
क्यूँ नहीं होते मुनाजातों के मअनी मुन्कशिफ़
रम्ज़ बन जाता है क्यूँ हर्फ़-ए-दुआ हम से सुनो
अनीस अशफ़ाक़
शेर
अब के वस्ल का मौसम यूँही बेचैनी में बीत गया
उस के होंटों पर चाहत का फूल खिला भी कितनी देर
मोहम्मद अहमद रम्ज़
शेर
जैसे ख़ला के पस-मंज़र में रंग रंग के नक़्श-ओ-निगार
बातें उस की वज़्न से ख़ाली लहजा भारी-भरकम है
मोहम्मद अहमद रम्ज़
शेर
अपनी ना-फ़हमी से मैं और न कुछ कर बैठूँ
इस तरह से तुम्हें जाएज़ नहीं एजाज़ से रम्ज़
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
शेर
'रम्ज़' अधूरे ख़्वाबों की ये घटती बढ़ती छाँव
तुम से देखी जाए तो देखो मुझ से न देखी जाए
मोहम्मद अहमद रम्ज़
शेर
और कोई दुनिया है तेरी जिस की खोज करूँ
ज़ेहन में फिर इक सम्त बिखेरी राहगुज़र डाली