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शेर
ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है
अल्लामा इक़बाल
शेर
उन्हें देखा तो ज़ाहिद ने कहा ईमान की ये है
कि अब इंसान को सज्दा रवा होने का वक़्त आया
हरी चंद अख़्तर
शेर
ये बुज़ुर्गों की रवा-दारी के पज़-मुर्दा गुलाब
आबियारी चाहते हैं इन में चिंगारी न रख
हामिद मुख़्तार हामिद
शेर
नशात-ए-इज़हार पर अगरचे रवा नहीं ए'तिबार करना
मगर ये सच है कि आदमी का सुराग़ मिलता है गुफ़्तुगू से
ग़ुलाम हुसैन साजिद
शेर
वक़्त-ए-रवा-रवी है उठे क़ाफ़िला के लोग
साक़ी चले पियाला जहाँ तक कि बस चले
मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम
शेर
मशरब में तो दुरुस्त ख़राबातियों के है
मज़हब में ज़ाहिदों के नहीं गर रवा शराब