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शेर
शहर ख़्वाबों का सुलगता रहा और शहर के लोग
बे-ख़बर सोए हुए अपने मकानों में मिले
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
शेर
किसी की याद से दिल का अंधेरा और बढ़ता है
ये घर मेरे सुलगने से मुनव्वर हो नहीं सकता
ग़ुलाम हुसैन साजिद
शेर
ज़ख़्म अभी तक ताज़ा हैं हर दाग़ सुलगता रहता है
सीने में इक जलियाँ-वाला-बाग़ सुलगता रहता है