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शेर
तू ने ही रह न दिखाई तो दिखाएगा कौन
हम तिरी राह में गुमराह हुए बैठे हैं
जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
शेर
है फ़हम उस का जो हर इंसान के दिल की ज़बाँ समझे
सुख़न वो है जिसे हर शख़्स अपना ही बयाँ समझे
जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
शेर
मोहब्बत में नहीं है इब्तिदा या इंतिहा कोई
हम अपने इश्क़ को ही इश्क़ की मंज़िल समझते हैं
जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
शेर
क़ुदरत की बरकतें हैं ख़ज़ाना बसंत का
क्या ख़ूब क्या अजीब ज़माना बसंत का
जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
शेर
आँखों आँखों में पिला दी मिरे साक़ी ने मुझे
ख़ौफ़-ए-ज़िल्लत है न अंदेशा-ए-रुस्वाई है
जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
शेर
हर शय में हर बशर में नज़र आ रहा है तू
सज्दे में अपने सर को झुकाऊँ कहाँ कहाँ
जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
शेर
छुपे हैं सात पर्दों में ये सब कहने की बातें हैं
उन्हें मेरी निगाहों ने जहाँ ढूँडा वहाँ निकले
जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
शेर
हम रू-ब-रू-ए-शम्अ हैं इस इंतिज़ार में
कुछ जाँ परों में आए तो उड़ कर निसार हों
जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
शेर
सुख़न-साज़ी में लाज़िम है कमाल-ए-इल्म-ओ-फ़न होना
महज़ तुक-बंदियों से कोई शाएर हो नहीं सकता
जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
शेर
दोज़ख़ से भी ख़राब कहूँ मैं बहिश्त को
दो-चार अगर वहाँ पे भी सरमाया-दार हों
जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
शेर
फ़रिश्ता हर बशर को हर ज़मीं को आसमाँ समझे
कि हम तो इश्क़ में दुनिया को ही जन्नत-निशाँ समझे
जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
शेर
जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
शेर
दिल उस का जिगर उस का है जाँ उस की हम उस के
किस बात से इंकार किया जाए किसी को
जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
शेर
एक आँसू भी अगर रो दे तो जानूँ तुझ को
मेरी तक़दीर मुझे देख कर हँसती क्या है
जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
शेर
फिर वही सौदा वही वहशत वही तर्ज़-ए-जुनूँ
हैं निशाँ मौजूद सारे इश्क़ की तासीर के
जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
शेर
महव-ए-दीदार हुए जाते हैं रह-रौ सारे
इक तमाशा हुआ गोया रुख़-ए-दिलबर न हुआ