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शेर
अदम वालों की सोहबत से भी नफ़रत हो गई अब तो
कोई वीराना अब सू-ए-अदम आबाद करते हैं
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
शब-ए-फ़ुर्क़त का जागा हूँ फ़रिश्तो अब तो सोने दो
कभी फ़ुर्सत में कर लेना हिसाब आहिस्ता आहिस्ता
अमीर मीनाई
शेर
अब उन की ख़्वाब-गाहों में कोई आवाज़ मत करना
बहुत थक-हार कर फ़ुटपाथ पर मज़दूर सोए हैं
नफ़स अम्बालवी
शेर
चराग़ों ने हमारे साए लम्बे कर दिए इतने
सवेरे तक कहीं पहुँचेंगे अब अपने बराबर हम