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शेर
मैं शु'आ-ए-ज़ात के सीने में गूँजा हूँ कभी
और 'करामत' मैं कभी लम्हों के ख़्वाबों में रहा
करामत अली करामत
शेर
कोई क्यूँ किसी का लुभाए दिल कोई क्या किसी से लगाए दिल
वो जो बेचते थे दवा-ए-दिल वो दुकान अपनी बढ़ा गए
बहादुर शाह ज़फ़र
शेर
तू इधर उधर की न बात कर ये बता कि क़ाफ़िले क्यूँ लुटे
तिरी रहबरी का सवाल है हमें राहज़न से ग़रज़ नहीं
शहाब जाफ़री
शेर
बहादुर शाह ज़फ़र
शेर
बहादुर शाह ज़फ़र
शेर
हाल-ए-दिल क्यूँ कर करें अपना बयाँ अच्छी तरह
रू-ब-रू उन के नहीं चलती ज़बाँ अच्छी तरह