aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "شیما"
तुम्हारा दिल मिरे दिल के बराबर हो नहीं सकतावो शीशा हो नहीं सकता ये पत्थर हो नहीं सकता
अपने जलने में किसी को नहीं करते हैं शरीकरात हो जाए तो हम शम्अ बुझा देते हैं
हज़ार शम्अ फ़रोज़ाँ हो रौशनी के लिएनज़र नहीं तो अंधेरा है आदमी के लिए
आईने में वो देख रहे थे बहार-ए-हुस्नआया मिरा ख़याल तो शर्मा के रह गए
ऐ शम्अ' तुझ पे रात ये भारी है जिस तरहमैं ने तमाम उम्र गुज़ारी है इस तरह
दिसम्बर की सर्दी है उस के ही जैसीज़रा सा जो छू ले बदन काँपता है
हवा ख़फ़ा थी मगर इतनी संग-दिल भी न थीहमीं को शम्अ जलाने का हौसला न हुआ
रुख़-ए-रौशन के आगे शम्अ रख कर वो ये कहते हैंउधर जाता है देखें या इधर परवाना आता है
मुझ को अक्सर उदास करती हैएक तस्वीर मुस्कुराती हुई
तुम इसे शिकवा समझ कर किस लिए शरमा गएमुद्दतों के बा'द देखा था तो आँसू आ गए
ये इंतिज़ार नहीं शम्अ है रिफ़ाक़त कीइस इंतिज़ार से तन्हाई ख़ूब-सूरत है
ले साँस भी आहिस्ता कि नाज़ुक है बहुत कामआफ़ाक़ की इस कारगह-ए-शीशागरी का
ज़िंदगी शम्अ की मानिंद जलाता हूँ 'नदीम'बुझ तो जाऊँगा मगर सुबह तो कर जाऊँगा
नाला-ए-बुलबुल-ए-शैदा तो सुना हँस हँस करअब जिगर थाम के बैठो मिरी बारी आई
उस के फ़रोग़-ए-हुस्न से झमके है सब में नूरशम-ए-हरम हो या कि दिया सोमनात का
इरादा तो नहीं है ख़ुद-कुशी कामगर मैं ज़िंदगी से ख़ुश नहीं हूँ
एक बरस और बीत गयाकब तक ख़ाक उड़ानी है
मुद्दतें हो गईं हिसाब किएक्या पता कितने रह गए हैं हम
शम्-ए-ख़ेमा कोई ज़ंजीर नहीं हम-सफ़राँजिस को जाना है चला जाए इजाज़त कैसी
होती कहाँ है दिल से जुदा दिल की आरज़ूजाता कहाँ है शम्अ को परवाना छोड़ कर
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