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शेर
बद की सोहबत में मत बैठो इस का है अंजाम बुरा
बद न बने तो बद कहलाए बद अच्छा बदनाम बुरा
इस्माइल मेरठी
शेर
सब कहाँ कुछ लाला-ओ-गुल में नुमायाँ हो गईं
ख़ाक में क्या सूरतें होंगी कि पिन्हाँ हो गईं
मिर्ज़ा ग़ालिब
शेर
कहीं शेर ओ नग़्मा बन के कहीं आँसुओं में ढल के
वो मुझे मिले तो लेकिन कई सूरतें बदल के
ख़ुमार बाराबंकवी
शेर
जो मिरी शबों के चराग़ थे जो मिरी उमीद के बाग़ थे
वही लोग हैं मिरी आरज़ू वही सूरतें मुझे चाहिएँ
ऐतबार साजिद
शेर
जुदाई की रुतों में सूरतें धुँदलाने लगती हैं
सो ऐसे मौसमों में आइना देखा नहीं करते