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शेर
हिज्र होगा न कोई हिज्र का नौहा होगा
बाज़ आते हैं मोहब्बत से जो होगा होगा
सय्यद ज़ामिन अब्बास काज़मी
शेर
पहले भी जिस पे मिरे सब्र की हद ख़त्म हुई
तू ने कर दी ना वही बात दोबारा मिरे दोस्त
सय्यद ज़ामिन अब्बास काज़मी
शेर
तुम्हारी बात से इतना भी दुख नहीं पहुँचा
मगर जो पहुँचा तुम्हारी वज़ाहतों से मुझे
सय्यद ज़ामिन अब्बास काज़मी
शेर
क़ुव्वत-ए-फ़िक्र भी दी ऐसे कि इक हद में रहो
यानी बे-कार समझदार बनाए गए हम
सय्यद ज़ामिन अब्बास काज़मी
शेर
बाग़ में एक भी फूल एक भी फल के होते
तू मुझे ज़ीस्त से बेज़ार नहीं कर सकता
सय्यद ज़ामिन अब्बास काज़मी
शेर
वो कह रहा था बुराई बुराई जन्ती है
सो उस के वास्ते ले कर कँवल गया हूँ मैं