aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "طب"
दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँबाज़ार से गुज़रा हूँ ख़रीदार नहीं हूँ
होगा किसी दीवार के साए में पड़ा 'मीर'क्या रब्त मोहब्बत से उस आराम-तलब को
आशिक़ी सब्र-तलब और तमन्ना बेताबदिल का क्या रंग करूँ ख़ून-ए-जिगर होते तक
कहाँ तो तय था चराग़ाँ हर एक घर के लिएकहाँ चराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए
मेरी तलब था एक शख़्स वो जो नहीं मिला तो फिरहाथ दुआ से यूँ गिरा भूल गया सवाल भी
एक बोसे के तलबगार हैं हमऔर माँगें तो गुनहगार हैं हम
कोई चराग़ जलाता नहीं सलीक़े सेमगर सभी को शिकायत हवा से होती है
या तेरे अलावा भी किसी शय की तलब हैया अपनी मोहब्बत पे भरोसा नहीं हम को
रोज़ दीवार में चुन देता हूँ मैं अपनी अनारोज़ वो तोड़ के दीवार निकल आती है
बहार आए तो मेरा सलाम कह देनामुझे तो आज तलब कर लिया है सहरा ने
दीदार की तलब के तरीक़ों से बे-ख़बरदीदार की तलब है तो पहले निगाह माँग
हमें हर वक़्त ये एहसास दामन-गीर रहता हैपड़े हैं ढेर सारे काम और मोहलत ज़रा सी है
तलब करें तो ये आँखें भी इन को दे दूँ मैंमगर ये लोग इन आँखों के ख़्वाब माँगते हैं
अगर शरर है तो भड़के जो फूल है तो खिलेतरह तरह की तलब तेरे रंग-ए-लब से है
बोसा जो तलब मैं ने किया हँस के वो बोलेये हुस्न की दौलत है लुटाई नहीं जाती
दिन अंधेरों की तलब में गुज़रारात को शम्अ जला दी हम ने
हम सहल-तलब कौन से फ़रहाद थे लेकिनअब शहर में तेरे कोई हम सा भी कहाँ है
शौक़-ए-सफ़र बे-सबब और सफ़र बे-तलबउस की तरफ़ चल दिए जिस ने पुकारा न था
जाने किस मोड़ पे ले आई हमें तेरी तलबसर पे सूरज भी नहीं राह में साया भी नहीं
मिरी मुश्किल मिरी मुश्किल नहीं हैवसीला तेरी आसानी का मैं हूँ
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