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शेर
वही है इख़्तिलाफ़-ए-बाहमी की अंजुमन अब तो
फ़क़त शादी के दिन उस ने मिलाई हाँ में हाँ मेरी
मोहम्मद ताहा खान
शेर
मिरी ख़ामोशियों पर दुनिया मुझ को तअन देती है
ये क्या जाने कि चुप रह कर भी की जाती हैं तक़रीरें