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शेर
परेशाँ हो के दिल तर्क-ए-तअल्लुक़ पर है आमादा
मोहब्बत में ये सूरत भी न रास आई तो क्या होगा
उनवान चिश्ती
शेर
रहने दे तकलीफ़-ए-तवज्जोह दिल को है आराम बहुत
हिज्र में तेरी याद बहुत है ग़म में तेरा नाम बहुत
उनवान चिश्ती
शेर
मिरे दहन में अगर आप की ज़बाँ होती
तो फिर कुछ और ही उन्वान-ए-दास्ताँ होता
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
शेर
कुछ तो बताओ ऐ फ़रज़ानो दीवानों पर क्या गुज़री
शहर-ए-तमन्ना की गलियों में बरपा है कोहराम बहुत
उनवान चिश्ती
शेर
ज़रा देखें तो दुनिया कैसे कैसे रंग भरती है
चलो हम अपने अफ़्साने का ग़म उनवान रखते हैं