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शेर
जिस की ख़ातिर सभी रिश्तों से हुआ था मुंकिर
अब सुना है कि वही शख़्स ख़फ़ा है मुझ से
फ़रहान हनीफ़ वारसी
शेर
हमारी महफ़िलों में बे-हिजाब आने से क्या होगा
नहीं जब होश में हम जल्वा फ़रमाने से क्या होगा
इम्तियाज़ अली अर्शी
शेर
हमारे घर से जाना मुस्कुरा कर फिर ये फ़रमाना
तुम्हें मेरी क़सम देखो मिरी रफ़्तार कैसी है