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शेर
मुर्तज़ा बरलास
शेर
ये सानेहे दिल-ए-ग़म-गीं हुआ ही करते हैं
न इश्क़ ही की ख़ता है न हुस्न ही का क़ुसूर
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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ये सानेहे दिल-ए-ग़म-गीं हुआ ही करते हैं
न इश्क़ ही की ख़ता है न हुस्न ही का क़ुसूर