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शेर
मोहब्बत को छुपाए लाख कोई छुप नहीं सकती
ये वो अफ़्साना है जो बे-कहे मशहूर होता है
लाला माधव राम जौहर
शेर
उसे पाक नज़रों से चूमना भी इबादतों में शुमार है
कोई फूल लाख क़रीब हो कभी मैं ने उस को छुआ नहीं
बशीर बद्र
शेर
ये माना इंक़लाब-ए-ज़िंदगी में लाख ख़तरे हैं
तमन्ना फिर भी है ये ज़िंदगी ज़ेर-ओ-ज़बर होती
फ़िराक़ गोरखपुरी
शेर
हम भी 'मुनीर' अब दुनिया-दारी कर के वक़्त गुज़ारेंगे
होते होते जीने के भी लाख बहाने आ जाते हैं
मुनीर नियाज़ी
शेर
दुनिया-दारी तो क्या आती दामन सीना सीख लिया
मरने के थे लाख बहाने फिर भी जीना सीख लिया