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शेर
प्यार का पहला ख़त लिखने में वक़्त तो लगता है
नए परिंदों को उड़ने में वक़्त तो लगता है
हस्तीमल हस्ती
शेर
मुज़्तर ख़ैराबादी
शेर
बहुत दिन ब'अद 'ज़ेहरा' तू ने कुछ ग़ज़लें तो लिख्खीं
न लिखने का किसी से क्या कोई वादा किया था
ज़ेहरा निगाह
शेर
कुछ न मतलब था न मज़मूँ शौक़ के दो हर्फ़ थे
मैं जो लिखने के लिए बैठा तो दफ़्तर हो गया
जलील मानिकपूरी
शेर
दिल की ही किसी बात को तहरीर न कर पाए
लिखने पे जब आए थे तो क्या क्या नहीं लिक्खा
शहज़ाद अंजुम बुरहानी
शेर
हर्फ़ सारे बोल उट्ठें जब भी मैं लिखने लगूँ
अब कोई जज़्बा मिरा महव-ए-दुआ लगता नहीं