aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "لگن"
परवाना गिर्द घूम के जब हो चुका फ़नाअब सारी रात शम्अ लगन में जली तो क्या
और क्या देखने को बाक़ी हैआप से दिल लगा के देख लिया
उड़ के आया है लगन में तिरे जल जाने कोशौक़ से फूँक दे ऐ शम्अ तू परवाने को
धोता हूँ जब मैं पीने को उस सीम-तन के पाँवरखता है ज़िद से खींच के बाहर लगन के पाँव
क्या फ़ाएदा है क़िस्सा-ए-रिज़वान से तुझेकोई शम्अ-रू परी सते तू भी लगन लगा
आसूदगी-आमोज़ हो जब आबला-पाईहो जाती है मंज़िल की लगन दिल में तपाँ और
ज़िंदगी किस तरह बसर होगीदिल नहीं लग रहा मोहब्बत में
उस के चेहरे की चमक के सामने सादा लगाआसमाँ पे चाँद पूरा था मगर आधा लगा
इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब'कि लगाए न लगे और बुझाए न बने
मुझे अब तुम से डर लगने लगा हैतुम्हें मुझ से मोहब्बत हो गई क्या
देखा है ज़िंदगी को कुछ इतने क़रीब सेचेहरे तमाम लगने लगे हैं अजीब से
जो कहा मैं ने कि प्यार आता है मुझ को तुम परहँस के कहने लगा और आप को आता क्या है
तुम्हारा हिज्र मना लूँ अगर इजाज़त होमैं दिल किसी से लगा लूँ अगर इजाज़त हो
वही फिर मुझे याद आने लगे हैंजिन्हें भूलने में ज़माने लगे हैं
तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगेमैं एक शाम चुरा लूँ अगर बुरा न लगे
ज़िंदगी क्या किसी मुफ़लिस की क़बा है जिस मेंहर घड़ी दर्द के पैवंद लगे जाते हैं
हसीं तो और हैं लेकिन कोई कहाँ तुझ साजो दिल जलाए बहुत फिर भी दिलरुबा ही लगे
दिल के फफूले जल उठे सीने के दाग़ सेइस घर को आग लग गई घर के चराग़ से
गर बाज़ी इश्क़ की बाज़ी है जो चाहो लगा दो डर कैसागर जीत गए तो क्या कहना हारे भी तो बाज़ी मात नहीं
यूँ लगे दोस्त तिरा मुझ से ख़फ़ा हो जानाजिस तरह फूल से ख़ुशबू का जुदा हो जाना
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