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शेर
ये अजीब माजरा है कि ब-रोज़-ए-ईद-ए-क़ुर्बां
वही ज़ब्ह भी करे है वही ले सवाब उल्टा
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
शेर
ये कैसा माजरा है हर मुसव्विर नक़्श-ए-हैरत है
तिरी तस्वीर जब खींची मिरी तस्वीर उतर आई
इज्तिबा रिज़वी
शेर
तू गोश-ए-दिल से सुने उस को गर बत-ए-बे-मेहर
फ़साना तुर्फ़ा है और माजरा है ज़ोर मिरा
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
माजरा-ख़ेज़ कल इक ख़्वाब था देखा हम ने
बीच दरिया में थे कश्ती से उतरते हुए लोग