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शेर
शायद उसी का ज़िक्र हो यारो मैं इस लिए
सुनता हूँ गोश-ए-दिल से हर इक मर्द-ओ-ज़न की बात
जुरअत क़लंदर बख़्श
शेर
यूँ क़तरे मिरे ख़ून के उस तेग़ से गुज़रे
जूँ फ़ौज का पुल पर से हो दुश्वार उतारा
जुरअत क़लंदर बख़्श
शेर
नौ-गिरफ़्तार-ए-मोहब्बत हूँ मिरी वज़्अ' से तुम
इतना घबराओ न प्यारे मैं सँभल जाऊँगा
जुरअत क़लंदर बख़्श
शेर
दिल जिगर की मिरे पूछे है ख़बर क्या है ऐ यार
नोक-ए-मिज़्गाँ पे ज़रा देख नुमूदार है क्या
जुरअत क़लंदर बख़्श
शेर
ता-सुब्ह मिरी आह-ए-जहाँ-सोज़ से कल रात
क्या गुम्बद-ए-अफ़्लाक ये हम्माम सा था गर्म