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शेर
जब आ जाती है दुनिया घूम फिर कर अपने मरकज़ पर
तो वापस लौट कर गुज़रे ज़माने क्यूँ नहीं आते
इबरत मछलीशहरी
शेर
अपने मरकज़ की तरफ़ माइल-ए-परवाज़ था हुस्न
भूलता ही नहीं आलम तिरी अंगड़ाई का
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
शेर
शकील बदायूनी
शेर
दिल कि है सरमाया-दार-ए-इज़्ज़त ओ नामूस-ए-हुस्न
है यही मरकज़ यही है दायरा मेरे लिए