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शेर
लिख के रख देता हूँ अल्फ़ाज़ सभी काग़ज़ पर
लफ़्ज़ ख़ुद बोल के तासीर बना लेते हैं
मोहम्मद मुस्तहसन जामी
शेर
इक कर्ब का मौसम है जो दाइम है अभी तक
इक हिज्र का क़िस्सा कि मुकम्मल नहीं होता
मोहम्मद मुस्तहसन जामी
शेर
मेरी ख़्वाहिश है कि जी भर के उसे देख तो लूँ
हिज्र के मुमकिना सदमात से पहले पहले
मोहम्मद मुस्तहसन जामी
शेर
जो जान छिड़कते थे वही कहते हैं मुझ से
तू हल्क़ा-ए-अहबाब में शामिल ही कहाँ था