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शेर
कहूँ तो किस से कहूँ अपना दर्द-ए-दिल मैं ग़रीब
न आश्ना न मुसाहिब न हम-नशीं कोई
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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कहूँ तो किस से कहूँ अपना दर्द-ए-दिल मैं ग़रीब
न आश्ना न मुसाहिब न हम-नशीं कोई