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शेर
सब मुनज्जम कहते हैं अब है बराबर रात दिन
सर से पा तक देख कर ज़ुल्फ़-ए-दराज़-ए-यार को
ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर
शेर
मुंजमिद हो ज़िंदगी में जब कभी शहर-ए-ख़याल
फिर चराग़-ए-दिल से उस को जगमगाना चाहिए