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शेर
नासेह ख़ता मुआफ़ सुनें क्या बहार में
हम इख़्तियार में हैं न दिल इख़्तियार में
मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम
शेर
हम ने पाला मुद्दतों पहलू में हम कोई नहीं
तुम ने देखा इक नज़र से दिल तुम्हारा हो गया
मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम
शेर
दिल-लगी में हसरत-ए-दिल कुछ निकल जाती तो है
बोसे ले लेते हैं हम दो-चार हँसते बोलते
मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम
शेर
हर इक फ़िक़रे पे है झिड़की तो है हर बात पर गाली
तुम ऐसे ख़ूबसूरत हो के इतने बद-ज़बाँ क्यूँ हो
मुंशी देबी प्रसाद सहर बदायुनी
शेर
वहशियों को क़ैद से छूटे हुए मुद्दत हुई
गूँजता है शोर अब तक कान में ज़ंजीर का
मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी
शेर
गुफ़्तुगू की तुम से आदत हो गई है वर्ना में
जानता हूँ बात करती है कहीं तस्वीर भी
मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी
शेर
दास्तान-ए-शौक़-ए-दिल ऐसी नहीं थी मुख़्तसर
जी लगा कर तुम अगर सुनते मैं कहता और भी
मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम
शेर
अदब बख़्शा है ऐसा रब्त-ए-अल्फ़ाज़-ए-मुनासिब ने
दो-ज़ानू है मिरी तब-ए-रसा तरकीब-ए-उर्दू से