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शेर
चाँद से तुझ को जो दे निस्बत सो बे-इंसाफ़ है
चाँद के मुँह पर हैं छाईं तेरा मुखड़ा साफ़ है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
शेर
मुज़्तर ख़ैराबादी
शेर
ऐ 'ज़ौक़' देख दुख़्तर-ए-रज़ को न मुँह लगा
छुटती नहीं है मुँह से ये काफ़र लगी हुई
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
शेर
जब तक माथा चूम के रुख़्सत करने वाली ज़िंदा थी
दरवाज़े के बाहर तक भी मुँह में लुक़्मा होता था
अज़हर फ़राग़
शेर
किस मुँह से कह रहे हो हमें कुछ ग़रज़ नहीं
किस मुँह से तुम ने व'अदा किया था निबाह का
हफ़ीज़ जालंधरी
शेर
दिल वो है कि फ़रियाद से लबरेज़ है हर वक़्त
हम वो हैं कि कुछ मुँह से निकलने नहीं देते
अकबर इलाहाबादी
शेर
लगे मुँह भी चिढ़ाने देते देते गालियाँ साहब
ज़बाँ बिगड़ी तो बिगड़ी थी ख़बर लीजे दहन बिगड़ा
हैदर अली आतिश
शेर
लड़ाई है तो अच्छा रात-भर यूँ ही बसर कर लो
हम अपना मुँह इधर कर लें तुम अपना मुँह उधर कर लो