aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "نامعقول"
ज़ाहिद शराब पीने दे मस्जिद में बैठ करया वो जगह बता दे जहाँ पर ख़ुदा न हो
जान लेनी थी साफ़ कह देतेक्या ज़रूरत थी मुस्कुराने की
ज़िंदगी यूँही बहुत कम है मोहब्बत के लिएरूठ कर वक़्त गँवाने की ज़रूरत क्या है
दिल टूटने से थोड़ी सी तकलीफ़ तो हुईलेकिन तमाम उम्र को आराम हो गया
बे पिए ही शराब से नफ़रतये जहालत नहीं तो फिर क्या है
बेचैन इस क़दर था कि सोया न रात भरपलकों से लिख रहा था तिरा नाम चाँद पर
किसी को कैसे बताएँ ज़रूरतें अपनीमदद मिले न मिले आबरू तो जाती है
लोग काँटों से बच के चलते हैंमैं ने फूलों से ज़ख़्म खाए हैं
ईद आई तुम न आए क्या मज़ा है ईद काईद ही तो नाम है इक दूसरे की दीद का
तुम हँसो तो दिन निकले चुप रहो तो रातें हैंकिस का ग़म कहाँ का ग़म सब फ़ुज़ूल बातें हैं
मिल के होती थी कभी ईद भी दीवाली भीअब ये हालत है कि डर डर के गले मिलते हैं
मुझ को छाँव में रखा और ख़ुद भी वो जलता रहामैं ने देखा इक फ़रिश्ता बाप की परछाईं में
देखा हिलाल-ए-ईद तो आया तेरा ख़यालवो आसमाँ का चाँद है तू मेरा चाँद है
उन के होने से बख़्त होते हैंबाप घर के दरख़्त होते हैं
कुछ ख़ुशियाँ कुछ आँसू दे कर टाल गयाजीवन का इक और सुनहरा साल गया
जिन के किरदार से आती हो सदाक़त की महकउन की तदरीस से पत्थर भी पिघल सकते हैं
ये तो इक रस्म-ए-जहाँ है जो अदा होती हैवर्ना सूरज की कहाँ सालगिरह होती है
पीता हूँ जितनी उतनी ही बढ़ती है तिश्नगीसाक़ी ने जैसे प्यास मिला दी शराब में
हसीन चेहरे की ताबिंदगी मुबारक होतुझे ये साल-गिरह की ख़ुशी मुबारक हो
दुनिया में वही शख़्स है ताज़ीम के क़ाबिलजिस शख़्स ने हालात का रुख़ मोड़ दिया हो
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