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शेर
कुछ एहतिराम भी कर ग़म की वज़्अ'-दारी का
गिराँ है अर्ज़-ए-तमन्ना तो बार बार न कर
सय्यद आबिद अली आबिद
शेर
उन्हीं को अर्ज़-ए-वफ़ा का था इश्तियाक़ बहुत
उन्हीं को अर्ज़-ए-वफ़ा ना-गवार गुज़री है
सय्यद आबिद अली आबिद
शेर
वो जहाँ चाहे चला जाए ये उस का इख़्तियार
सोचना ये है कि मैं ख़ुद को कहाँ ले जाऊँगा
चन्द्रभान ख़याल
शेर
'अज़ीज़' मुँह से वो अपने नक़ाब तो उलटें
करेंगे जब्र अगर दिल पे इख़्तियार रहा
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
शेर
वो किसी के हैं मैं किसी का हूँ मगर एक रब्त है आज तक
वही एहतियात-ए-निगाह है वही एहतियात-ए-कलाम है