aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "پبلک"
पब्लिक में ज़रा हाथ मिला लीजिए मुझ सेसाहब मिरे ईमान की क़ीमत है तो ये है
अगर पलक पे है मोती तो ये नहीं काफ़ीहुनर भी चाहिए अल्फ़ाज़ में पिरोने का
निगह उठी तो ज़माने के सामने तिरा रूपपलक झुकी तो मिरे दिल के रू-ब-रू तिरा ग़म
मुद्दत हुई पलक से पलक आश्ना नहींक्या इस से अब ज़ियादा करे इंतिज़ार चश्म
ऐ नूर-ए-जान-ओ-दीदा तिरे इंतिज़ार मेंमुद्दत हुई पलक सूँ पलक आश्ना नईं
पलक झपकने में कुछ ख़्वाब टूट जाते हैंजो बुत-शिकन है वही लम्हा बुत-तराश भी था
पलक फ़साना शरारत हिजाब तीर दुआतमन्ना नींद इशारा ख़ुमार सख़्त थकी
यूँ पलक पर जगमगाना दो घड़ी का ऐश हैरौशनी बन कर मिरे अंदर ही अंदर फैल जा
ख़ुदा जाने पलक से क्यूँकि लगती है पलक हमदमकभी आँखों से हम ने तो न देखा अपने सोने को
ऐ नूर-ए-नज़र मुंतज़िर-ए-वस्ल हूँ आ जादो पाट पलक के नहीं दरवाज़ा हुआ महज़
जब से तेरी नज़र पड़ी है झलकतब से लगती नहीं पलक से पलक
दिल में आ राह-ए-चश्म-ए-हैराँ सींखुल रहे हैं मिरी पलक के पाट
फ़ज़ा-ए-शहर बड़ी ख़ुश-गवार थी लेकिनपलक झपकते ही कैसा अजीब मंज़र था
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