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शेर
अगर है ज़िंदगी इक जश्न तो ना-मेहरबाँ क्यों है
फ़सुर्दा रंग में डूबी हुई हर दास्ताँ क्यों है
अमीता परसुराम मीता
शेर
तुम्हें हम से मोहब्बत है हमें तुम से मोहब्बत है
अना का दायरा फिर भी हमारे दरमियाँ क्यों है
अमीता परसुराम मीता
शेर
सुब्ह-ए-रौशन को अंधेरों से भरी शाम न दे
दिल के रिश्ते को मिरी जान कोई नाम न दे