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शेर
वही आँखों में और आँखों से पोशीदा भी रहता है
मिरी यादों में इक भूला हुआ चेहरा भी रहता है
साक़ी फ़ारुक़ी
शेर
मिज़ाज अलग सही हम दोनों क्यूँ अलग हों कि हैं
सराब ओ आब में पोशीदा क़ुर्बतें क्या क्या
फ़ुज़ैल जाफ़री
शेर
कहाँ मुमकिन है पोशीदा ग़म-ए-दिल का असर होना
लबों का ख़ुश्क हो जाना भी है आँखों का तर होना
अनवरी जहाँ बेगम हिजाब
शेर
मिरे दिल की तजल्ली क्यों रहे पोशीदा मज्लिस में
ज़'ईफ़ी सूँ हुआ है पर्दा-ए-फ़ानूस तन मेरा
वली दकनी
शेर
हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा