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शेर
एक ही अंजाम है ऐ दोस्त हुस्न ओ इश्क़ का
शम्अ भी बुझती है परवानों के जल जाने के ब'अद
अख़तर मुस्लिमी
शेर
शिकस्त-ए-साग़र-ए-दिल की सदाएँ सुन रहा हूँ मैं
ज़रा पूछो तो साक़ी से कि पैमानों पे क्या गुज़री
वहशी कानपुरी
शेर
आज डूबा हुआ ख़ुशबू में है पैराहन-ए-जाँ
ऐ सबा किस ने ये पूछा है तिरा नाम-ओ-निशाँ
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
शेर
रफ़ू फिर कीजियो पैराहन-ए-यूसुफ़ को ऐ ख़य्यात
सिया जाए तो सी पहले तू चाक-ए-दिल ज़ुलेख़ा का
रज़ा अज़ीमाबादी
शेर
यूँ ही आसाँ नहीं है नूर में तहलील हो जाना
वो सातों रंग 'क़ासिर' एक पैराहन में रखता है
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
शेर
होंट की सुर्ख़ी झाँक उठती है शीशे के पैमानों से
मिट्टी के बर्तन में पानी पी कर प्यास बुझाया कर