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शेर
टपकते हैं शब-ए-ग़म दिल के टुकड़े दीदा-ए-तर से
सहर को कैसे कैसे फूल चुनता हूँ मैं बिस्तर से
जलील मानिकपूरी
शेर
हमेशा तिनके ही चुनते गुज़र गई अपनी
मगर चमन में कहीं आशियाँ बना न सके
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
शेर
दीप जलते हैं दिलों में कि चिता जलती है
अब की दीवाली में देखेंगे कि क्या होता है