aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "چھلاوا"
परी थी कोई छलावा थी या जवानी थीकहाँ ये हो गई चम्पत झलक दिखा के मुझे
सहरा का कोई फूल मोअ'त्तर तो नहीं थाथा एक छलावा कोई मंज़र तो नहीं था
शदीद प्यास थी फिर भी छुआ न पानी कोमैं देखता रहा दरिया तिरी रवानी को
हम ने काँटों को भी नरमी से छुआ है अक्सरलोग बेदर्द हैं फूलों को मसल देते हैं
मैं ने अपनी ख़ुश्क आँखों से लहू छलका दियाइक समुंदर कह रहा था मुझ को पानी चाहिए
अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाएजिस में इंसान को इंसान बनाया जाए
ज़रा छुआ था कि बस पेड़ आ गिरा मुझ परकहाँ ख़बर थी कि अंदर से खोखला है बहुत
सारे आलम पर हूँ मैं छाया हुआमुस्तनद है मेरा फ़रमाया हुआ
चाँदनी रातों में चिल्लाता फिराचाँद सी जिस ने वो सूरत देख ली
सीने में राज़-ए-इश्क़ छुपाया न जाएगाये आग वो है जिस को दबाया न जाएगा
किसी के ऐब छुपाना सवाब है लेकिनकभी कभी कोई पर्दा उठाना पड़ता है
क्या क्या दिलों का ख़ौफ़ छुपाना पड़ा हमेंख़ुद डर गए तो सब को डराना पड़ा हमें
तेरी बातों को छुपाना नहीं आता मुझ सेतू ने ख़ुश्बू मिरे लहजे में बसा रक्खी है
हक़ीक़त को छुपाया हम से क्या क्या उस के मेक-अप नेजिसे लैला समझ बैठे थे वो लैला की माँ निकली
अश्कों के तसलसुल ने छुपाया तन-ए-उर्यांये आब-ए-रवाँ का है नया पैरहन अपना
मैं किसी आँख से छलका हुआ आँसू हूँ 'नबील'मेरी ताईद ही क्या मेरी बग़ावत कैसी
आप से अब क्या छुपाना आप कोई ग़ैर हैंहो चुका हूँ मैं किसी का आप भी हो जाइए
आज मेरी इक ग़ज़ल ने उस के होंटों को छुआआज पहली बार अपनी शाइ'री अच्छी लगी
मुँह छुपाना था तुम्हें पहले ही रोज़अब किया पर्दा तो क्या पर्दा किया
उसे छुआ ही नहीं जो मिरी किताब में थावही पढ़ाया गया मुझ को जो निसाब में था
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